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इंसान धरती के कितने ऊपर तक जिंदा रह सकता है?

इंसान धरती के कितने ऊपर तक जिंदा रह सकता है? – एक विस्तृत विश्लेषण

हाय दोस्तों! आज हम एक बहुत ही दिलचस्प सवाल पर बात करने जा रहे हैं—इंसान धरती के कितने ऊपर तक जिंदा रह सकता है? आपने कभी सोचा है कि हम कितनी ऊँचाई तक जा सकते हैं, जहाँ हम साँस ले सकें, जीवित रह सकें, और सामान्य रूप से काम कर सकें? यह सवाल सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं, बल्कि हम जैसे आम लोगों के लिए भी रोचक है। हम पहाड़ों पर चढ़ते हैं, हवाई जहाज में उड़ते हैं, और अंतरिक्ष यात्रियों को चाँद तक जाते देखते हैं। लेकिन क्या हम बिना किसी खास उपकरण के बहुत ऊँचाई पर जीवित रह सकते हैं? चलिए, इस सवाल का जवाब ढूँढते हैं और इसे आसान भाषा में समझते हैं।

धरती का वायुमंडल: एक परिचय

सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि धरती का वायुमंडल कैसे काम करता है। धरती का वायुमंडल कई परतों से बना है—ट्रोपोस्फीयर, स्ट्रैटोस्फीयर, मेसोस्फीयर, थर्मोस्फीयर, और एक्सोस्फीयर। हमारी साँस लेने की प्रक्रिया ट्रोपोस्फीयर में सबसे अच्छी तरह काम करती है, जो धरती की सतह से लगभग 8 से 15 किलोमीटर (5 से 9 मील) तक फैली है। समुद्र तल पर हवा का दबाव 1 वायुमंडल (1013 मिलीबार) होता है, और हवा में 21% ऑक्सीजन होती है, जो हमें जीवित रखने के लिए जरूरी है।

लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर जाते हैं, हवा पतली होती जाती है, ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है, और वायुमंडलीय दबाव भी घटता है। यह हमारे शरीर पर असर डालता है। तो सवाल यह है कि हम कितनी ऊँचाई तक बिना किसी खास मदद के जीवित रह सकते हैं?

समुद्र तल से ऊँचाई और मानव शरीर

इंसान का शरीर समुद्र तल पर सबसे अच्छा काम करता है, जहाँ हवा का दबाव और ऑक्सीजन की मात्रा सही होती है। लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर जाते हैं, हालात बदलते हैं। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु हैं:

  • 0 से 2,000 मीटर (0 से 6,562 फीट): यह ऊँचाई ज्यादातर लोगों के लिए सामान्य है। यहाँ हवा का दबाव और ऑक्सीजन की मात्रा इतनी होती है कि हम आसानी से साँस ले सकते हैं। दिल्ली, जो 216 मीटर की ऊँचाई पर है, इसका एक अच्छा उदाहरण है। यहाँ किसी को कोई खास दिक्कत नहीं होती।
  • 2,000 से 3,000 मीटर (6,562 से 9,843 फीट): इस ऊँचाई पर कुछ लोगों को हल्की सिरदर्दी, थकान, या साँस लेने में तकलीफ हो सकती है। यह ऊँचाई हाई एल्टीट्यूड (High Altitude) कहलाती है। शिमला (2,200 मीटर) और मसूरी (2,000 मीटर) जैसे हिल स्टेशन इस रेंज में आते हैं। ज्यादातर लोग यहाँ कुछ दिनों में ढल जाते हैं।
  • 3,000 से 5,000 मीटर (9,843 से 16,404 फीट): इस ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी साफ महसूस होती है। यहाँ हाई एल्टीट्यूड सिकनेस (Altitude Sickness) के लक्षण दिख सकते हैं, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, उल्टी, और साँस लेने में दिक्कत। लद्दाख (3,500 मीटर) और माउंट एवरेस्ट बेस कैंप (5,364 मीटर) इस रेंज में आते हैं। यहाँ शरीर को ढलने में समय लगता है, और कुछ लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ सकती है।
  • 5,000 मीटर से ऊपर: यहाँ से हालात बहुत मुश्किल हो जाते हैं। 5,500 मीटर (18,045 फीट) से ऊपर को “डेथ ज़ोन” कहा जाता है, क्योंकि यहाँ ऑक्सीजन इतनी कम होती है कि इंसान बिना सप्लीमेंट्री ऑक्सीजन के ज्यादा देर तक जीवित नहीं रह सकता।

इंसान डेथ ज़ोन: 8,000 मीटर से ऊपर

माउंट एवरेस्ट, जो 8,848 मीटर (29,029 फीट) ऊँचा है, डेथ ज़ोन का सबसे बड़ा उदाहरण है। यहाँ हवा का दबाव समुद्र तल के 1/3 से भी कम होता है, और ऑक्सीजन की मात्रा इतनी कम होती है कि इंसान का शरीर सामान्य रूप से काम नहीं कर पाता। यहाँ साँस लेना बहुत मुश्किल होता है, और शरीर को ऊर्जा बनाने के लिए जरूरी ऑक्सीजन नहीं मिलती।

पर्वतारोही जो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ते हैं, वे आमतौर पर ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कुछ लोग बिना ऑक्सीजन के भी चढ़े हैं। 1978 में रेनहोल्ड मेसनर और पीटर हेबेलर ने पहली बार बिना सप्लीमेंट्री ऑक्सीजन के एवरेस्ट की चढ़ाई की थी। लेकिन यह बहुत खतरनाक है—ऐसे में हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी), हाई एल्टीट्यूड पल्मोनरी एडिमा (HAPE), और हाई एल्टीट्यूड सेरेब्रल एडिमा (HACE) का खतरा बढ़ जाता है। ये दोनों बीमारियाँ जानलेवा हो सकती हैं।

बिना ऑक्सीजन के कितनी ऊँचाई तक?

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंसान बिना सप्लीमेंट्री ऑक्सीजन के अधिकतम 8,000 मीटर (26,247 फीट) तक जीवित रह सकता है, लेकिन सिर्फ कुछ घंटों के लिए। इसे “आर्मस्ट्रांग लिमिट” भी कहते हैं, जो लगभग 18,000 से 19,000 फीट (5,500 से 5,800 मीटर) की ऊँचाई पर है। यहाँ हवा का दबाव इतना कम होता है कि पानी 37 डिग्री सेल्सियस (हमारे शरीर का तापमान) पर उबलने लगता है। इसका मतलब है कि हमारे शरीर में मौजूद तरल पदार्थ (जैसे खून) बुलबुले बनाने लगते हैं, जो जानलेवा हो सकता है।

लेकिन 8,000 मीटर से ऊपर, जैसे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर, बिना ऑक्सीजन के जीवित रहना लगभग नामुमकिन है। यहाँ कुछ मिनटों में ही इंसान बेहोश हो सकता है, और कुछ घंटों में उसकी मौत हो सकती है।

हवाई जहाज और अंतरिक्ष यात्रा

अब बात करते हैं हवाई जहाज और अंतरिक्ष यात्रा की। कमर्शियल हवाई जहाज आमतौर पर 30,000 से 40,000 फीट (9,144 से 12,192 मीटर) की ऊँचाई पर उड़ते हैं। यहाँ हवा का दबाव और ऑक्सीजन इतनी कम होती है कि इंसान बिना प्रेशराइज्ड केबिन के जीवित नहीं रह सकता। इसलिए हवाई जहाज में केबिन को प्रेशराइज्ड किया जाता है, ताकि अंदर का दबाव समुद्र तल के बराबर रहे। अगर किसी वजह से केबिन का दबाव कम हो जाए (जैसे खिड़की टूट जाए), तो ऑक्सीजन मास्क निकल आते हैं, जो आपको 10-15 मिनट तक ऑक्सीजन देते हैं, ताकि पायलट हवाई जहाज को नीचे ला सके।

अंतरिक्ष यात्रियों की बात करें, तो वे धरती से 400 किलोमीटर (248 मील) ऊपर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर रहते हैं। लेकिन यहाँ कोई हवा नहीं होती, और उन्हें जीवित रहने के लिए स्पेससूट और ऑक्सीजन सिस्टम की जरूरत होती है। अंतरिक्ष में बिना स्पेससूट के इंसान 15 सेकंड में बेहोश हो जाएगा, और 1-2 मिनट में उसकी मौत हो जाएगी।

रिकॉर्ड: सबसे ऊँची चढ़ाई

कुछ लोग बिना ऑक्सीजन के भी बहुत ऊँचाई तक गए हैं। माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) पर बिना ऑक्सीजन के चढ़ने का रिकॉर्ड कई पर्वतारोहियों ने बनाया है। लेकिन यह बहुत खतरनाक है। 2019 तक, 4% से भी कम लोग बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचे हैं, और इसमें से कई की मौत हो गई।

शेरपा समुदाय के लोग, जो हिमालय में रहते हैं, ऊँचाई पर बेहतर ढलते हैं। उनके शरीर में जेनेटिक बदलाव होते हैं, जो उन्हें कम ऑक्सीजन में भी जीवित रहने की क्षमता देते हैं। लेकिन आम इंसान के लिए यह बहुत मुश्किल है।

ऊँचाई पर जीवित रहने के लिए टिप्स

अगर आप ऊँचाई पर जा रहे हैं, जैसे लद्दाख या माउंट एवरेस्ट बेस कैंप, तो ये टिप्स फॉलो करें:

  • धीरे-धीरे ऊपर जाएँ: अपने शरीर को ढलने का समय दें। हर 1,000 मीटर पर 1-2 दिन रुकें।
  • खूब पानी पिएँ: ऊँचाई पर डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ता है।
  • हल्का खाना खाएँ: भारी खाना पचने में दिक्कत हो सकती है।
  • ऑक्सीजन सिलेंडर साथ रखें: 5,000 मीटर से ऊपर यह जरूरी है।
  • लक्षणों पर नज़र रखें: अगर सिरदर्द, उल्टी, या साँस लेने में दिक्कत हो, तो तुरंत नीचे आएँ।

तालिका: ऊँचाई और मानव शरीर पर प्रभाव

ऊँचाई (मीटर)वायुमंडलीय दबावऑक्सीजन की मात्रामानव शरीर पर प्रभाव
0 (समुद्र तल)1013 मिलीबार21%सामान्य, कोई दिक्कत नहीं
2,000800 मिलीबार16%हल्की थकान, सिरदर्द (कुछ लोगों को)
5,000540 मिलीबार11%हाई एल्टीट्यूड सिकनेस, साँस लेने में दिक्कत
8,000 (डेथ ज़ोन)356 मिलीबार7%बिना ऑक्सीजन के कुछ घंटों में मौत संभव
12,000 (हवाई जहाज)200 मिलीबार4%प्रेशराइज्ड केबिन के बिना जीवित रहना असंभव

आखिरी बात

तो दोस्तों, “इंसान धरती के कितने ऊपर तक जिंदा रह सकता है?” इसका जवाब यह है कि बिना किसी खास उपकरण के इंसान अधिकतम 5,500 से 8,000 मीटर तक कुछ घंटों के लिए जीवित रह सकता है। लेकिन 8,000 मीटर से ऊपर, जैसे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर, बिना ऑक्सीजन के जीवित रहना लगभग नामुमकिन है। हवाई जहाज और अंतरिक्ष यात्रा में हमें प्रेशराइज्ड केबिन और स्पेससूट की जरूरत होती है। ऊँचाई पर जाने से पहले अच्छी तैयारी करें

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