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पटरियों के किनारे विंड टर्बाइन लगाने पर विचार कर रहा रेलवे, 2030 तक नेट-जीरो का लक्ष्य

वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन का नेट-जीरो लक्ष्य हासिल करने के भारतीय रेल के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए रेल मंत्रालय पटरियों के किनारे पवन च​क्कियां लगाकर पवन ऊर्जा का लाभ उठाने पर विचार कर रहा है। मामले से अवगत लोगों ने इसकी जानकारी दी। इस मामले पर नवंबर में एक उच्च-स्तरीय बैठक में चर्चा की गई थी जिसमें रेलवे को इस तरह के कदम की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए कहा गया था। इसके लिए रेलवे ने पहले एक प्रायोगिक परियोजना भी शुरू की थी।
एक वरिष्ठ सरकारी अ​धिकारी ने बताया, ‘रेलवे अभी जोनल और अन्य सरकारी विभागों के साथ शुरुआती चरण का सलाह-मशविरा कर रहा है। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर विंड टर्बाइन लगाकर इसकी व्यवहार्यता जांच की गई थी और बीते समय में प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ भी चर्चा की गई थी। आगे इस दिशा में और गंभीरता से विचार किया जाएगा।’
वर्ष 2023 में प​श्चिम रेलवे ने प्रायोगिक परियोजना के तौर पर रेल पटरियों के किनारे छोटी पवन च​क्कियां लगाई थीं। विंड टबाईन 1 से लेकर 10 किलोवाट बिजली पैदा करने में सक्षम होंगे। जोनल रेलवे ने ऐसे पांच ब्लेड लगाए हैं।
अक्षय ऊर्जा उत्पादन करने के लिए इस अवधारणा को अ​भिनव उपाय के तौर पर वैश्विक रेल प्रणाली में उपयोग किया गया है। मगर रेलवे के एक अधिकारी ने अनौपचारिक तौर पर कहा कि लॉजि​स्टिक संबंधी चिंताओं के कारण भारत में इसका विस्तार व्यापक स्तर पर नहीं किया जा सकता है। जब कोई ट्रेन 50-100 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से छोटी पवन चक्कियों के किनारे से गुजरती है तो ब्लेड तांबे की प्लेटों और अन्य धातुओं से जुड़े रोटर शाफ्ट के माध्यम से हवा की गति के कारण घूमते हैं। जिससे बिजली पैदा होती है।
इस बारे में जानकारी के लिए रेल मंत्रालय को ईमेल भेजा गया और पश्चिम रेलवे के प्रवक्ता को कॉल किया गया मगर खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि कई वजहों से यह परियोजना चालू नहीं हो पाई। पूर्व मध्य रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक ललित चंद्र त्रिवेदी ने कहा, ‘रेल पटरियां अक्सर ऐसे इलाकों में नहीं होती हैं जहां लगातार तेल हवाएं चलें जबकि तेज हवाएं टर्बाइन को चलाने के लिए अहम होती हैं।’

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