इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शराब तस्करी मामले में FIR और जब्ती मेमो में अभियुक्त की जाति का उल्लेख करने की प्रथा को समाप्त करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने इसे कानूनी भ्रांति बताते हुए संवैधानिक नैतिकता के लिए चुनौती बताया। कोर्ट ने राज्य सरकार को पुलिस दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं में बदलाव करने का निर्देश दिया जिसमें अभियुक्तों और गवाहों की जाति से संबंधित कॉलम हटाने को कहा गया।
अपने निर्णय में न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने इसे कानूनी भ्रांति व पहचान की प्रोफाइलिंग बताते हुए कहा कि यह संवैधानिक नैतिकता को कमजोर करती है। यह भारत में संवैधानिक लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती है।
कोर्ट ने प्रदेश सरकार को पुलिस दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं में व्यापक बदलाव करने का निर्देश दिया है। आधिकारिक फार्मों से अभियुक्तों, मुखबिरों और गवाहों की जाति से संबंधित समस्त कालम और प्रविष्टियों को हटाने का आदेश दिया है। अपर मुख्य सचिव गृह, डीजीपी के परामर्श से स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर तैयार करें।